अध्याय 9 – समाधान की राह: लिंग-निरपेक्ष न्याय और सामाजिक जागरूकता
“न्याय तब तक अधूरा है, जब तक वह केवल एक पक्ष की बात सुनता है।”
✍️ भूमिका
जब समाज किसी एक वर्ग की पीड़ा को ही सुनता है, तो अनजाने में दूसरे वर्ग की चुप्पियों को अनदेखा कर देता है। पुरुष विमर्श का लक्ष्य किसी का विरोध नहीं, बल्कि संतुलन और समानता की दिशा में कदम बढ़ाना है। यह अध्याय लिंग-निरपेक्ष न्याय और सामाजिक जागरूकता की उस राह की बात करता है, जहाँ हर आवाज़ को समान संवेदना मिले।
⚖️ लिंग-निरपेक्ष न्याय: संवेदनशील दृष्टिकोण
कानून का मूल उद्देश्य न्याय है, लेकिन जब कानून लिंग-विशेष होकर लागू होता है, तो न्याय अधूरा रह जाता है। भारत में कई कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए हैं — जो आवश्यक भी हैं — परंतु उनके दुरुपयोग ने पुरुषों के लिए मानसिक, सामाजिक और कानूनी संकट खड़े किए हैं।
- IPC 498A — दहेज उत्पीड़न मामलों में 70–80% शिकायतें झूठी साबित होती हैं (NCRB रिपोर्ट 2023)।
- DV Act (2005) — केवल महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि कई पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं।
- तलाक और कस्टडी — बच्चों की कस्टडी अधिकांशतः माताओं को दी जाती है, जिससे पिता भावनात्मक रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं।
🧭 सुधार की दिशा
लिंग-निरपेक्ष न्याय प्रणाली की दिशा में कुछ ठोस कदम आवश्यक हैं:
- कानूनों की निष्पक्ष समीक्षा और संशोधन।
- जांच के बाद ही गिरफ्तारी की नीति।
- पुरुष आयोग की स्थापना — महिला आयोग की तर्ज़ पर।
- पुरुषों के लिए काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ सुलभ कराना।
- सार्वजनिक संवाद — "मर्द की बात" जैसी पहलों के माध्यम से सामाजिक जागरूकता।
📊 सामाजिक जागरूकता और आँकड़े
| विषय | स्थिति | समाधान |
|---|---|---|
| आत्महत्या दर | पुरुषों में 70% से अधिक | मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता |
| IPC 498A के झूठे मामले | 70–80% मामलों में सत्यापन झूठा | कानूनी समीक्षा और सख्त कार्रवाई |
| पुरुष आयोग | अभी अस्तित्वहीन | संसदीय प्रस्ताव और जन समर्थन |
| भावनात्मक शिक्षा | शिक्षा व्यवस्था से अनुपस्थित | स्कूल/कॉलेज में शामिल करना |
🎓 शिक्षा और संवाद की भूमिका
समानता की शुरुआत संवाद से होती है। स्कूल और कॉलेज स्तर पर भावनात्मक शिक्षा, जेंडर-संवेदनशील पाठ्यक्रम, और संवाद सत्रों की शुरुआत समाज को संतुलित दिशा दे सकती है। CMP Degree College जैसे संस्थानों में Himansh World की “मर्द की बात” श्रृंखला इसी संवाद को सशक्त बना रही है।
🎥 मीडिया और साहित्य की भूमिका
- फिल्मों, वेब-सीरीज़ और कविताओं में पुरुष की संवेदनशील छवि को स्थान मिलना चाहिए।
- Masaan, Tamasha, Paatal Lok जैसी फिल्मों ने पुरुषों की भावनात्मक जटिलता को उभारा।
- Himansh World और EduSerene जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर पुरुष विमर्श को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया जा रहा है।
💡 व्यवहारिक कदम
- पुरुष आयोग की स्थापना और नीति स्तर पर संवाद।
- मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन — विशेष रूप से पुरुषों के लिए।
- कानूनी दुरुपयोग पर दंडात्मक कार्रवाई।
- अकादमिक स्तर पर पुरुष विमर्श पर शोध और लेखन।
- साहित्यिक मंचों पर पुरुषों की कहानियों को प्रस्तुत करना।
💬 Himansh World का योगदान
“मर्द की बात” श्रृंखला के माध्यम से Himansh World ने इस संवेदनशील विषय को कॉलेजों, सोशल मीडिया और युवाओं के बीच एक संवाद का रूप दिया है। कविताएँ, पॉडकास्ट और चर्चाएँ समाज को नई दिशा दे रही हैं — जहाँ संवेदना किसी लिंग की नहीं, इंसान की पहचान बन रही है।
💡 निष्कर्ष
समानता का अर्थ समान पीड़ा को समझना भी है। पुरुष विमर्श कोई विरोध नहीं, बल्कि संतुलन की पुकार है। जब समाज हर लिंग की संवेदनाओं को बराबर महत्व देगा, तभी न्याय सच्चा होगा — और यही इस अध्याय का सार है।
📘 Further Reading / Sources
© Himansh 🌼 | EduSerene — Book excerpt from मर्द की बात