अध्याय 8: साहित्य में पुरुष विमर्श — मुक्तिबोध, धूमिल और समकालीन स्वर

अध्याय 8 – साहित्य में पुरुष विमर्श: मुक्तिबोध, धूमिल और समकालीन स्वर

Himansh 🌼 (Shivam Yadav) · Book: मर्द की बात — Chapter 8
“जब कविता में भी मर्द चुप रहा, तो समाज ने उसकी चुप्पी को आदत मान लिया।”

✍️ भूमिका

हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श, दलित विमर्श और आदिवासी विमर्श पर गहरा लेखन हुआ है। परंतु पुरुष विमर्श — जो पुरुषों की भावनाओं, संघर्षों और चुप्पियों को समझने की कोशिश करता है — साहित्य में अभी भी सीमित है। यह अध्याय उन कवियों और लेखकों को समर्पित है जिन्होंने इस चुप्पी को शब्दों में ढाला।

🖋️ गजानन माधव मुक्तिबोध – आत्मसंघर्ष का प्रतीक

मुक्तिबोध की कविताएँ पुरुष के भीतर चल रहे द्वंद्व, असंतोष और आत्ममंथन को उजागर करती हैं। उनकी रचनाएँ एक ऐसे व्यक्ति की झलक देती हैं जो समाज से टकराता है, पर भीतर से लगातार टूट रहा होता है।

“जो है, उससे बेहतर चाहिए... जो नहीं है, उसका सपना चाहिए...”

“अंधेरे में” जैसी कविताएँ पुरुष की चेतना, असहायता और भय की गहराइयों को खोलती हैं। मुक्तिबोध का पुरुष नायक संवेदनशील भी है और विद्रोही भी — उसकी जद्दोजहद आधुनिक पुरुष की भावनात्मक यात्रा बन जाती है।

🖋️ सुदामा पांडेय 'धूमिल' – व्यवस्था से टकराता पुरुष

धूमिल की कविताओं में पुरुष का क्रोध, असहायता और सामाजिक विडंबना प्रमुख विषय हैं। वे एक ऐसे पुरुष की आवाज़ हैं जो न्याय की तलाश में है, पर व्यवस्था की दीवारों से टकरा रहा है।

“शब्द और शस्त्र के व्यवहार का व्याकरण अलग-अलग है...”

उनकी कविता “मोचीराम” में एक साधारण पुरुष के आत्मसम्मान और अस्तित्व की लड़ाई का चित्रण है। धूमिल का पुरुष अपने भीतर एक द्वंद्व लेकर चलता है — सत्ता से टकराता है, लेकिन भीतर से भावनात्मक रूप से अकेला है।

📚 समकालीन स्वर – नई पीढ़ी के लेखन में पुरुष विमर्श

आज की नई लेखन पीढ़ी पुरुष की भावनात्मक जटिलताओं को अधिक खुलेपन से व्यक्त कर रही है। सोशल मीडिया और ब्लॉग्स ने इस विमर्श को नई ऊर्जा दी है। Himansh World जैसे मंच इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

  • अशोक कुमार पांडेय और अनुराग जैसे कवियों ने पुरुष के संवेदनात्मक पक्ष को साहित्यिक भाषा दी।
  • समकालीन इंस्टा-पोएट्री में ‘Emotional Masculinity’ पर लेखन उभर रहा है।
  • Himansh World पर “मर्द की बात” श्रृंखला इसी प्रवृत्ति का विस्तार है — जहाँ हर एपिसोड में साहित्य और संवेदना जुड़ते हैं।

🎭 साहित्य में पुरुष विमर्श की स्थिति

पहलू स्थिति
साहित्य में विमर्शअभी सीमित, पर धीरे-धीरे उभरता हुआ
भावनात्मक अभिव्यक्तिमुक्तिबोध, धूमिल जैसे कवियों में स्पष्ट
समकालीन लेखनसोशल मीडिया, ब्लॉग्स और पॉडकास्ट में सक्रिय
अकादमिक विमर्शअभी भी सीमित, पर शोध की संभावनाएँ अधिक

💡 निष्कर्ष

पुरुष विमर्श साहित्य में कोई विरोध का स्वर नहीं, बल्कि एक संवेदनात्मक पुनर्पाठ है। मुक्तिबोध और धूमिल जैसे कवियों ने यह दिखाया कि “मर्द” भी भीतर से कोमल, प्रश्नशील और पीड़ित हो सकता है। समकालीन साहित्य इस विमर्श को आगे बढ़ा रहा है — अब वह समय है जब पुरुष की चुप्पी कविता बन रही है।


📘 Further Reading / Sources

H🌼
Himansh 🌼 (Shivam Yadav)
लेखक – “मर्द की बात” श्रृंखला के रचयिता। उद्देश्य: उन आवाज़ों को समाज तक पहुँचाना जो अब तक कविता के किनारों पर थीं। संपर्क: eduserene@gmail.com

© Himansh 🌼 | EduSerene — Book excerpt from मर्द की बात

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