भक्ति साहित्य की विविध धाराएँ
उद्भव, पृष्ठभूमि, निर्गुण-सगुण धाराएँ और प्रमुख कवि
भक्तिकाल: हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग
हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल (संवत् १३७५–१७००) को स्वर्ण युग कहा जाता है। यह वह काल था जब राजनीतिक पराधीनता, सामाजिक विघटन और धार्मिक संकीर्णता के बीच साहित्य ने भारतीय जनमानस को आत्मिक संबल प्रदान किया। भक्ति साहित्य का जन्म दरबारी संरक्षण या युद्ध-प्रेरणा से नहीं, बल्कि विशुद्ध ईश्वर-प्रेम और लोक-कल्याण की भावना से हुआ।
काल-विभाजन: निर्गुण भक्ति (प्रारंभिक) → सगुण भक्ति (उत्तरार्ध)
भक्तिकाल के उदय पर विवादास्पद मत
🇮🇳 भारतीय मत
- रामचंद्र शुक्ल: इस्लामी आक्रमणों से उत्पन्न हताशा
- हजारी प्रसाद: भारतीय चिंतन का स्वाभाविक विकास
"अगर इस्लाम न आया होता तो भी भक्ति साहित्य वैसा ही होता" – द्विवेदी
🌍 पाश्चात्य मत
- ग्रियर्सन: ईसाई प्रभाव का फल
- वैद्य: सूफी दर्शन का प्रभाव
भारतीय विद्वानों द्वारा खंडित
भक्ति साहित्य की चार प्रमुख धाराएँ
निर्गुण भक्ति: ज्ञानाश्रयी शाखा (संत काव्य)
कबीरदास: संत परंपरा के प्रवर्तक
बीजक (साखी, सबद, रमैनी)
• सधुक्कड़ी भाषा
• हिंदू-मुस्लिम आडंबरों पर प्रहार
• "जाति न पूछो साधु की..."
• गुरु नानक: एक ओंकार
• रैदास: निर्मल मन
• दादू दयाल: परब्रह्म पंथ
सूफ़ी काव्य: प्रेमाश्रयी शाखा
सूफ़ी कवियों ने ईश्वर को प्रियतम और जीव को प्रेमी मानकर लौकिक प्रेम-कथाओं के माध्यम से आध्यात्मिक सत्य व्यक्त किया। इश्क़ हकीकी (सच्चा प्रेम) उनका मूल सिद्धांत था।
- मलिक मुहम्मद जायसी: पद्मावत (अलाउद्दीन+पद्मिनी)
- कुतुबन: मृगावती
- उसमान: चित्रावली
सगुण भक्ति: रामानंदी और कृष्णानंदी
राम भक्ति (रामानंदी)
- तुलसीदास: रामचरितमानस
- अगहनंद: राम गीतावली
- भाषा: अवधी
कृष्ण भक्ति (अष्टछाप)
- सूरदास: सूरसागर
- नंददास: भगवत जीवन
- भाषा: ब्रजभाषा
भक्ति साहित्य का ऐतिहासिक महत्व
भक्ति आंदोलन ने न केवल धार्मिक सुधार किया, बल्कि हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाया, जाति-भेद मिटाया और लोक-काव्य परंपरा को स्थापित किया। निर्गुण भक्तों ने वैराग्य दिया, सगुण भक्तों ने प्रेम और भक्ति का भाव।
आदिकाल → रासो → भक्ति स्वर्णयुग
"तीनों इकाइयों का अध्ययन समाप्त। परीक्षा उत्तम!"
