रासो काव्य परंपरा | व्युत्पत्ति, विशेषताएँ, प्रमुख रचनाएँ | M.A. हिंदी इकाई 2

📜 M.A. हिंदी प्रथम सेमेस्टर · प्रथम प्रश्नपत्र · इकाई 2

रासो काव्य परंपरा
व्युत्पत्ति, विशेषताएँ, प्रमुख रचनाएँ और ऐतिहासिक महत्व


'रासो' शब्द की व्युत्पत्ति: विद्वानों के मत

रासो काव्य आदिकालीन हिंदी साहित्य की वह सर्वाधिक ओजस्वी और लोकप्रिय धारा है, जिसके आधार पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने पूरे आदिकाल को "वीरगाथा काल" नाम दिया। यह चारण-भाट परंपरा द्वारा विकसित काव्यशैली है, जिसमें राजाओं के युद्ध, शौर्य, प्रेम-प्रसंग और अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन का अद्भुत समन्वय मिलता है।

🔍 'रासो' शब्द के प्रमुख मत:
रामचंद्र शुक्ल: संस्कृत 'रसायन' → रासो
हजारी प्रसाद: 'रासक' (गेय नाट्य रूप)
हरप्रसाद शास्त्री: 'राजयश' (राजा का यश)
नरोत्तम स्वामी: 'रास' (नृत्य-गीत)

वर्तमान में 'रासो' शब्द वीरगाथात्मक काव्य का पर्याय बन चुका है, जिसमें इतिहास और कल्पना का मिश्रण, वीर रस की प्रधानता और गेयता प्रमुख है।

ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

रासो काव्य मध्यकालीन भारत के उस राजनीतिक विखंडन की उपज है जब देश सैकड़ों छोटे-छोटे सामंती राज्यों में बँटा था। चौहान, परमार, चालुक्य, सोलंकी आदि राजपूत वंशों के बीच निरंतर युद्ध चल रहे थे। चारण कवि इन राजाओं के साथ युद्धक्षेत्र में रहते थे और उनकी वीरता को अमर करने का दायित्व निभाते थे।

  • राजनीतिक: सामंती कलह + तुर्क आक्रमण
  • सामाजिक: वीरता-पूजा + राजभक्ति
  • सांस्कृतिक: लोक-गीत परंपरा + दरबारी काव्य

रासो काव्य की आठ प्रमुख विशेषताएँ

रस–भाव स्तर

  • वीर रस की प्रधानता + ओज गुण
  • श्रृंगार का समावेश (संयोग-वियोग)
  • अतिशयोक्ति + उदात्त भाव

भाषा–शैली स्तर

  • डिंगल भाषा (वीर रस के लिए)
  • पिंगल भाषा (श्रृंगार के लिए)
  • छंद विविधता (६८+ छंद)
पृथ्वीराज रासो को "छंदों का अजायबघर" क्यों कहा गया?
दोहा, सोरठा, छप्पय, कवित्त, तोमर, पद्धरी सहित ६८ प्रकार के छंदों का प्रयोग।

प्रमुख रासो रचनाएँ और रचयिता

रचना रचयिता विषय-वस्तु विशेषता
पृथ्वीराज रासो चंदबरदाई पृथ्वीराज चौहान + संयोगिता प्रेमकथा हिंदी का प्रथम महाकाव्य, ६९ सर्ग
बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह बीसलदेव + राजमती प्रेम-वियोग श्रृंगार प्रधान, ४ खंड, १२१२ वि.सं.
परमाल रासो जगनिक आल्हा-ऊदल की ५२ युद्ध गाथाएँ लोकप्रिय आल्हा खंड, मौखिक परंपरा
खुमान रासो दलपति विजय चित्तौड़ के खुमान + बगदाद युद्ध वीर-श्रृंगार समन्वय
हम्मीर रासो शांर्गधर/जल्हण हम्मीरदेव + अलाउद्दीन संघर्ष रणथंभौर वीरगाथा

ऐतिहासिक प्रामाणिकता का विवाद

रासो ग्रंथों की ऐतिहासिकता पर विद्वानों में गंभीर मतभेद हैं:

  • अप्रामाणिक: रामचंद्र शुक्ल (कल्पना प्रधान)
  • अर्द्ध-प्रामाणिक: हजारी प्रसाद (इतिहास+कल्पना)
  • प्रामाणिक: कर्नल टॉड (ऐतिहासिक दस्तावेज़)

वास्तविकता यह है कि रासो अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ हैं जहाँ वास्तविक घटनाओं को काव्यात्मक रूप देने हेतु अतिशयोक्ति और कल्पना का सहारा लिया गया।


रासो परंपरा का साहित्यिक महत्व

📖 भाषाई योगदान
डिंगल-पिंगल का विकास
छंद-विविधता की परंपरा
🎭 शैलीगत नवीनता
युद्ध-वर्णन की सजीवता
वीर-श्रृंगार समन्वय
🏛️ सांस्कृतिक महत्व
राजपूत वीरता का संरक्षण
लोक-परंपरा का विकास
🔗 अगली इकाई में (इकाई 3):
भक्ति साहित्य का स्वर्णयुग
निर्गुण vs सगुण • रामचंद्र शुक्ल vs हजारी प्रसाद
ज्ञानाश्रयी संत काव्य से सूफ़ी प्रेमाश्रयी तक
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