अध्याय 4: कानून और पुरुष – सुरक्षा या शोषण?

अध्याय 4: कानून और पुरुष – सुरक्षा या शोषण?

Himansh 🌼 (Shivam Yadav) · Book: मर्द की बात — Chapter 4
“जब कानून एकतरफा हो जाए, तो न्याय भी चुप हो जाता है।”

✍️ भूमिका

कानून का उद्देश्य न्याय देना है, लेकिन जब किसी व्यवस्था में कानून लिंग-विशेष प्रभाव छोड़ने लगे तो उदाहरणों और अनुभवों से सवाल उठते हैं। यह अध्याय उन कानूनी प्रावधानों और प्रैक्टिस का विश्लेषण करता है जिनके कारण पुरुषों के अनुभव और पीड़ा अक्सर दृष्टिगत नहीं होते — और जिनके दुरुपयोग की घटनाएँ सामाजिक विमर्श में जगह बना रही हैं।

⚖️ प्रमुख कानूनी पहलू

1. IPC 498A (दहेज़ उत्पीड़न)

IPC 498A को दहेज़ उत्पीड़न और विवाहिक प्रताड़ना रोकने के लिए लागू किया गया था — यह महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम रहा है। साथ ही कई मामलों में दुरुपयोग की शिकायतें भी उठी हैं, और कुछ मामलों में आरोप बाहर साबित हुए। बिना पर्याप्त जांच के गिरफ्तारी या सामाजिक बहिष्कार परिवारों पर गंभीर मानसिक और आर्थिक प्रभाव डाल सकते हैं।

2. DV Act (Domestic Violence Act)

घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए DV Act महत्वपूर्ण है। किंतु चर्चा यह भी है कि समावेशी/लिंग-निरपेक्ष सुरक्षात्मक उपायों की कमी पुरुषों के अनुभवों को छुपाती है — कुछ पुरुष भी घरेलू हिंसा और मानसिक उत्पीड़न के शिकार होते हैं, पर उनकी आवाज़ कम सुनी जाती है।

3. तलाक, कस्टडी और आर्थिक दायित्व

तलाक के मामलों में अक्सर कस्टडी और नाबालिगों के हित पर बहस होती है। पारंपरिक रूप से मां को प्राथमिकता दी जाती रही है; इससे कई बार पिता भावनात्मक रूप से अलग रह जाते हैं। साथ ही आर्थिक दायित्वों और असमर्थता के मुद्दे पिता के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं।

📊 हाल की घटनाएँ और संवेदनाएँ

कुछ हाई-प्रोफ़ाइल मामलों (जैसे कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में उठे दुरुपयोग के आरोप) ने दिखाया कि किस तरह कानून के नाम पर व्यक्तियों को मानसिक और सामाजिक रूप से नुकसान हो सकता है। इन घटनाओं ने लिंग-निरपेक्ष कानूनों और बेहतर न्यायिक प्रक्रियाओं की मांग को गति दी है।

🧠 पुरुष अधिकार आंदोलन — मांगें और विवाद

कुछ स्वतंत्र संगठन और सोशल मीडिया अभियान पुरुषों के कानूनी और सामाजिक अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। उनकी प्रमुख मांगों में लिंग-निरपेक्ष कानून, पुरुष आयोग की स्थापना और झूठे आरोपों में सख्त जांच-प्रक्रिया शामिल है। इन आंदोलनों पर आलोचना भी होती है—क्योंकि उनका उद्देश्य कभी-कभी जनहित की रक्षा से टकरा सकता है; इसलिए संतुलित विमर्श जरूरी है।

📚 साहित्य और कानूनी पीड़ा

साहित्य में कानूनी पीड़ा पर चर्चा कम है, पर मीडिया और पत्रकारिता ने इन विषयों को उठाना शुरू किया है। यह विमर्श आवश्यक है ताकि न्याय तंत्र के संभाव्य दुरुपयोग और उसके शिकारों दोनों की कहानी सुनी जा सके।

💡 समाधान और सुझाव

  • लिंग-निरपेक्ष समीक्षा: ऐसे कानूनों की समय-समय पर समीक्षा हो ताकि दुरुपयोग के खिलाफ़ सुरक्षा मिले और असल पीड़ितों को न्याय।
  • जांच-आधारित गिरफ्तारी नीति: झटपट गिरफ्तारी के स्थान पर तफ्तीश और पुख़्ता प्रमाणिकता को प्राथमिकता दी जाए।
  • काउंसलिंग और मार्गदर्शन: दोनों पक्षों के लिए पारिवारिक काउंसलिंग और विधिक मार्गदर्शन सुलभ होना चाहिए।
  • पुरुष आयोग या विभागीय चैनल: समर्पित संस्थागत व्यवस्था जो पुरुषों की कानूनी और सामाजिक शिकायतों को त्वरित रूप से देखे।
  • संतुलित मीडिया रिपोर्टिंग: मीडिया को मामलों की संवेदनशीलता समझते हुए संतुलित और तथ्य-आधारित कवरेज करनी चाहिए।

🔚 निष्कर्ष

कानून का उद्देश्य सबके लिए न्याय सुनिश्चित करना है — न कि किसी एक पक्ष को विशेषाधिकार देना। जब कानून या उसकी कार्यवाही एकतरफा होने का अनुभव दे, तो समाज में असंतोष और पीड़ा बढ़ती है। "मर्द की बात" का यह अध्याय न्याय की उस सम्मुखता की माँग करता है जहाँ कानूनी सुरक्षा, संवेदनशीलता और निष्पक्ष प्रक्रिया तीनों साथ रहें।


📘 Further Reading / Sources

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Himansh 🌼 (Shivam Yadav)
लेखक — “मर्द की बात” श्रृंखला के रचयिता। उद्देश्य: न्याय, संवेदनशीलता और संतुलन की मांग को सामाजिक विमर्श में लाना। संपर्क: eduserene@gmail.com

© Himansh 🌼 | EduSerene — Book excerpt from मर्द की बात

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